भारत के भू-आकृतिक विभाग पार्ट 2 पूर्वी घाट
पूर्वी घाट श्रीखलाबद्ध रूप मे नहीं मिलती क्योंकि महानदी , गोदावरी , कृष्णा , कावेरी आदि नदियों ने इसे जगह - जगह पर काट
दिए है | पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी ओड़ीशा की आरोयाकोंडा
है | पूर्वी घाट को सबसे उत्तरी भाग मे उत्तरी पहाड़ी (
उत्तरी सरकार ) , मध्य मे कुडप्पा पहाड़ी और दक्षिण तमिलनाडू
पहाड़ियों के अंतर्गत आते है | पूर्वी घाट की औसत ऊंचाई 600
मीटर है यधपी ` दक्षिण मे नीलगिरी श्रेणी के निकट यह
सर्वाधिक ऊंचाई प्रपट करती है
उत्तर भारत का विशाल मैदान :
इसे सिंधु - गंगा - ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा जाता है | इसका विस्तार लगभग
2300 किमी तक है एवं चौड़ाई 150 से 300 किमी तक है | यह मैदान
जलोढ़ अवसादों से निर्मित है | इसमे जलोढ़ो का निक्षेप 2000
मीटर की गहराई तक मिलता है | एसा माना जाता है की टेथीस भू -
सन्नति के निरन्तर संकरे होने एवं अवसादों के उसमें निरन्तर जमाव की प्रक्रिया से
इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ है | इन मैदानों मे उच्चावच
अत्यधिक कम है एवं कहीं भी इसकी ऊंचाई 204 मीटर से अधिक नहीं है | अंबाला के आसपास की भूमि इस मैदान मे जलविभाजक का कार्य करती है क्योंकि
इसके पूर्व की नदियां बंगाल की खाड़ी में एवं पश्चिम की नदियां अरब सागर मे गिरती
है |
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उत्तर भारत का विशाल मैदान |
विशिष्ट धरातलीय स्वरूप के आधार पर इस मैदान को चार भागों में बांटा जा सकता है :
1) भाबर प्रदेश :
यह शिवालिक की तलहटी में
सिंधु से लेकर तीस्ता तक अविच्छिन्न रूप में मिलता है | इसकी चौड़ाई 8 से 16 किमी है | कंकड़ – पत्थरों (
बजरी ) की अधिकता के कारण इसमें इतनी अधिक पारगम्यता है कि नदियां यहाँ विलीन हो
जाती है |
2) तराई प्रदेश :
यह भाबर प्रदेश के
दक्षिणी भागों में मिलता है | अत्यधिक आर्द्रता के
कारण यह प्राय : दलदली क्षेत्र है | भाबर प्रदेशकी लुप्त
नदियां यहाँ पुन: सतह पर आ जाती है | परंतु उनकी गति धीमी
रहती है |, तराई प्रदेश घने वनों का प्रदेश है एवं जैव
विविधता का विशाल भंडार है |
3) बगर प्रदेश :
यह मैदानी भागों का वह उच्च
भाग है जहां समान्यत: बाढ़ का पानि नहीं पंहुच पाता |
पुराने जलोड़ो से इसका निर्माण हुआ है एवं कंकड़ व रेट अधिक मात्रा में है | जहां इस प्रदेश में कंकड़ पत्थरों के कारण असमतल व उच्च भूमि बन गई है , उसे स्थानीय नाम भूड़ दिया गया है | उदाहरण के लिए
गंगा , यमुना दोआब के ऊपरी भाग में यह भूड़ निक्षेपों के रूप
में मिलता है |
4) खादर प्रदेश :
यह नवीन जलोड़ो से
निर्मित है | यहाँ बाढ़ प्राय: हर वर्ष नई उर्वर
मिट्टी लाती रहती है | अंत: इस प्रदेश को कछारी प्रदेश या
बाढ़ का मैदान भी कहते है | खादर प्रदेश का ही विस्तार डेल्टा
प्रदेश के रूप में हुआ है | उदाहरण के लिए गंगा –
ब्रह्मपुत्र का डेल्टा जो पश्चिम बंगाल व बंदलादेश में फैला हुआ है |
पंजाब से असोम तक विस्तृत इस मैदानी भाग
कि संरचना में स्थानीय भिन्नताओं का पाया जाना स्वाभाविक है | पंजाब के पश्चिम में यह मैदान मुख्यत; बांगर से
निर्मित है पश्चिमी सप्तसिंधु प्रदेश जहां प्राचीनकाल में आर्यों ने अपनी पहली
बस्ती बसाई थी में पश्चिमी से पूर्व कि और दोआबों का क्रम है – सिंधु – झेलम का
सिंधु सागर दोआब रावी – व्यास का बारी दोआब चेनाब – रावी का रेचना दोआब , रावी – व्यास का बारी दोआब , व्यास – सतलज का दोआब , सतलज – सरस्वती का दोआब |
सरस्वती के लुप्त होने से
अब सतलज – सरस्वती का दोआब | सरस्वती के लुप्त होने से अब
सतलज – सरस्वती दोआब का अस्तित्व नहीं मिलता | सतलज कि
पुरानी धारा ही राजस्थान में घग्घर के नाम सी जानी जाती है |
पंजाब से पूर्व के ओर बढ्ने पर
गंगा – यमुना का दोआब मिलता है जो पुराने बंगार जलोड़ से
निर्मित है | यह नए जलोड़ से बनी खादर भूमि से भिन्न
है एवं उसमें 15 से 30 मी की ऊँचाई में मिलती है | इन दोनों
के कारण बनी ढाल का स्थानीय नाम खोल है | गंगा मैदान के
मध्यवर्ती क्षेत्र में विभिन्न नदियों के जलोड़ शंकु एवं जलोड़ पंख मिलते हैं | बंगाल का डेल्टाइ मैदान अधिक आर्द्रतायुक्त प्राय: दलदली क्षेत्र है |
प्रायद्वीपीय पठार और हुगली के बीच के क्षेत्र को गिरिपदीय मैदान भी कहा
जा सकता है | यहाँ लैटेराइट संरचना ( जैसे बारीन्द क्षेत्र )
भी काफी दूर तक मिलती है | असोम की और गंगा ब्रह्मपुत्र और
उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ वेदिकाएँ मिलती है |
उत्तर भारतीय मैदान आर्थिक दृष्टि से
अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अत्यंत उर्वर भूमि है | चुर्की यहाँ वर्षा और सिंचाई होती है | अंत: यहाँ कृषि
कार्य सहजता से संभव है | सड़कों व रेलमार्गों के कारण यहाँ
वाणिज्या वाणिज्या व्यवसाय का समुचित विकास हुआ है इन्हीं कारणों से इन मैदानी
क्षेत्रों में घनी जनसंख्या का बसाव है |
तटवर्ती मैदान
प्रायद्वीपीय पठारी भाग के पूर्व व पश्चिम
में दो संकरे तटीय मैदान मिलते है जिन्हें क्रमश: पूर्वी तटीय एवं पश्चिमी तटीय
मैदान कहा जाता है | इनका निर्माण सागरीय तरंगो
द्वारा अपरदन व निक्षेप एवं पठारी नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के जमाव से हुआ है|
पश्चिमी तटीय मैदान
गुजरात से कन्याकुमारी के तटीय क्षेत्र
में विस्तृत है | यह एक संकरी जलोढ़ पट्टी
है जिसमे बीच – बीच में पहाड़ी भू – भाग है | गुजरात क्षेत्र
में नर्मदा – ताप्ती के मुहानों पर इसकी
चौड़ाई सर्वाधिक ( 80 किमी ) है | कच्छ कठियावाड़ क्षेत्र में
समुद्री निक्षेपों की प्रधानता है | कठियावाड़ के मैदानी
भागों में रेगड़ मिट्टी का पर्याप्त
विस्तार है | गुजरात से गोआ तक का तटीय मैदान कोंकण तट
कहलाता है | गोआ से कर्नाटक के मंगलोर तक का क्षेत्र कन्नड़
तट कहलाता है | यह अत्यधिक संकरा मैदानी भाग है | मंगलौर से कन्याकुमारी तक का तटीय मैदान मालाबार तट कहलाता है यधपी कन्नड़
तट को भी कभी – कभी इसके अंतर्गत शामिल कर दिया जाता है |
मालाबार तट में पश्च जल एवं लैगूनों की प्रधानता है जिन्हें कयाल कहा जाता है | ये वे जलीय भाग है जो स्थलों द्वारा घेर लिए गए है |
पूर्वी तटीय मैदान
पश्चिमी तटीय मैदानों की तुलना में अधिक
चौड़ा है | महानदी , गोदावरि , कृष्णा , कावेरी आदि नदियों के डेलटाइ भागों में इसकी चौड़ाई और भी बढ़ जाती है | दक्षिण भाग में इसकी अधिकतम चौड़ाई मिलती है | ओढ़िशा
व आंध्र प्रदेश के तटवर्ती मैदानों को उत्कल तट , कलिंग तट
या उत्तरी सरकार तट कहा जाता है | जबकि कृष्णा – गोदावरी
डेल्टा से कन्याकुमारी तक विस्तृत आंध्र प्रदेश से तमिलनाडू के तटीय मैदानों को
कोरोमंडल तट के नाम से जाना जाता है | कम कटा – छटा होने के
कारण पूर्वी तट पर प्रकृतिक पोताश्रयों की कमी है | कहीं –
कहीं लैगूनों का निर्माण भी मिलता है , उदाहरण के लिए चिल्का
, कोल्लेरु व पुलिकट | पूर्वी तटीय
मैदान अपने अधिक विस्तार के कारण कृषि की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण व धनी
जनसंख्या का क्षेत्र है |
ऐतिहासिक काल में भू – संचालन के कारण
दोनों ही तटीय भागों में निमज्जन व उतथपन के प्रमाण मिले है | उदाहरण के लिए मुम्बई के निकट निमज्जन एवं कच्छ के निकट उतथपन के निर्माण
मिले है | इसी प्रकार पूर्वी तट के उत्तरी भागों में उतथपन
के एवं दक्षिण भाग में स्टीथ तिनेवेली एवं पंडिचोरी के निकट निमज्जन के प्रमाण
मिले है |
द्वीपीय भाग
भारत के द्वीपीय भागों में अंडमान निकोबार
व लक्षद्वीप प्रमुख है | बंगाल की खड़ी में स्तिथ
अंडमान निकोबार द्वीप समूह म्यांमार स्तिथ अराकान्योमा का ही दक्षिणी विस्तार है | इस प्रकार ये द्वीप निमज्जित उच्च भूमि के अवशेष है | लैंडफाल द्वीप अंडमान – निकोबार द्वीप समूह उत्तरी द्वीप है | कोकि जलमार्ग इसे म्यांमार के कोको द्वीप से अलग करता है | जहां चीन ने दो सुषुप्त ज्यालामुखी एवं बैरन द्वीप में एक सरकीय
ज्वालामुखी है|
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द्वीपीय भाग |
उत्तरी अंडमान एक पर्वतीय क्षेत्र है जहां
साइडल पीक नामक महत्वपूर्ण पर्वत चोटी मिलती है | यह सदाहरित
वनों का भी क्षेत्र है मध्य अंडमान – निकोबार का सबसे बड़ा द्वीप है | दक्षिण अंडमान में अंडमान – निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर
स्तिथ है | प्रसिद्ध सेल्यूलर जेल यही अवस्तिथ है | माउंट हैरियट व हैवालक यहाँ के अन्य प्रमुख द्वीप है जहा राष्ट्रीय पार्क
भी है | लघु अंडमान द्वीपसमूह का सबसे डाकधिनी भाग है 10
चएनेल इसे निकोबार द्वीपसमूह के कर निकोबार से अलग करता है |
ग्रेट निकोबार अंडमान निकोबार का दक्षिणतम द्वीप है | इंदिरा
पॉइंट यही पर स्तिथ है | यहाँ जीव मण्डल आरिक्षत क्षेत्र भी
है | नांकनरो निकोबार द्वीप समूह का एक महत्वपूर्ण द्वीप है
अरब सागर में स्तिथ लक्षद्वीप समूह प्रवाल
द्वीपों के उदाहरण है | ये अंत: सागरीय चबूतरों
पर चुने पर निर्वाह करने वाले मूंगा जीवों के अस्थिपंजरों से निर्मित है | आंड्रोत द्वीप लक्षद्वीप का सबसे बड़ा द्वीप है जबकि आमींदिवि लक्षद्वीप
का सबसे बड़ा द्वीप समूह है | कवरतती द्वीप लक्षद्वीप की
राजधानी है | यह मिनिकाय द्वीप से 9 चएनेल के द्वारा अलग है | मणिकाय द्वीप 8 चएनेल के द्वारा मालदीव से अलग होता है | मूंगा चट्टानों से निर्मित ये द्वीप जैव विविधता के विशाल भंडार है |
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